Wednesday, July 9, 2008

राक्षस समझ रखी है

एक परिवार मे कुछ मेहमान आए थे। उस घर का मुखिया बहुत कंजूस था। उसने अपनी पत्नी से कहा देखो आजशाम को खाना खिलाते समय इस बात का ख्याल रखना की दुबारा जो भी खाना तुम लाना पहले मुझे देना तबमेहमानों को।
शाम को सब को खाना खा रहे थे। सबकी थालियों मे दो-दो रोटियां दी गई थी। दुबारा जब पत्नी रोटी लेकर सबसेपहले अपनी पती को देने लगी तो पती ने कहा।
पती-राक्षस समझ रखी है....?????? मैं कितना खाऊँगा हाँ मेहमानों से पूछ लो।
सारे मेहमान- नहीं-नहीं भाभीजी हम तो बिल्कुल ही नहीं लेंगे
(सबेरे नाश्ते मे जब पत्नी चाय लेकर आई तो पती से पूछी नाश्ते मे क्या बना दूँ।)
पती- यार तुम भी ना! जाओ तुमको खाना है तो बना के खा लो।
हाँ मेहमानों से पूछ लो
सारे मेहमान- नहीं-नहीं भाभीजी हम तो रात मे ही बहुत खा लीये हैं।

1 comments:

Anonymous said...

ha ha ha sahi hai.