राकेश और रघु एक बार शहर गये; शहर की उँची उँची इमारतें देख कर वो हैरान हो गए। आखीर एक उँची इमारतके पास खडे होकर वो उसकी मंजीलें गीनने लगे। इतने में इक सीपाही आकर बोला क्या देख रहे हो ?
दोनों : कुछ नहीं साहेब बस ईमारत देख रहे थे।
सीपाही: ये शहर है यहाँ ईमारत देखने के पैसे लगते हैं। (राकेश से ) कीतने मंजील तुमने देखा ?
राकेश : साहेब पांच मंजील तक मैंने देखा ।
सीपाही: अच्छा तो निकालो 5० रूपये (रघु से ) तुमने कीतने मंजील देखा?
रघु : साहेब मैंने तो दो ही मंजील देखा है।
सीपाही: ठीक है ठीक है तुम २० रूपये दो। ( पैसे देने के बाद जब सीपाही के चले जाने के बाद में रघु ने राकेश से पूछा, राकेश तुमने कीतने मंजील देखा था।
राकेश: पांच
रघु: तू यार देहाती का देहाती ही रह गया। मैंने तो १० देखा था, पर २ ही बतलाया , साले आये थे चूना लगाने उल्टे मैंने चूना लगा दीया।
Sunday, June 10, 2007
मैंने चूना लगा दीया
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